हरेली तिहार के शुभ मौके पर ग्राम बोडरा में कुछ ऐसा नज़ारा देखने को मिला, जिसे देख हर दिल छत्तीसगढ़ी संस्कृति पर फख्र करने लगा। गांव की मिट्टी, खेतों की हरियाली और लोगों की मुस्कान ने मिलकर इस पर्व को एक ऐतिहासिक आयोजन बना दिया। लोक खेल उत्सव में सिर्फ प्रतियोगिता नहीं हुई, बल्कि संस्कृति की पुनः स्थापना हुई। गेड़ी चढ़ते युवाओं की फुर्ती, मटका फोड़ते बच्चों की हिम्मत, नारियल और गोला फेंकते बुज़ुर्गों की ताक़त ने ये साबित कर दिया कि ये खेल सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि हमारी जड़ों से जुड़ाव का जरिया हैं। आयोजन में गांव के हर वर्ग – छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक – ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। खेलों के दौरान तालियों की गड़गड़ाहट और उत्साह के नारों से पूरा इलाका गूंजता रहा।
मुख्य अतिथि कोमल संभाकर ने दिल छूने वाली बात कही: आज जब बच्चे मोबाइल की दुनिया में गुम हो रहे हैं, ऐसे में ये देसी खेल उन्हें मैदान और मिट्टी से जोड़ते हैं। हरेली तिहार सिर्फ एक परंपरा नहीं, यह हमारी पहचान, सम्मान और संस्कारों की गवाही है।
विजेताओं को ट्रॉफी व नकद पुरस्कारों से नवाज़ा गया, वहीं सभी प्रतिभागियों को सम्मान-पत्र व उत्साहवर्धन मिला। आयोजन में कहीं भी सिर्फ जीत की बात नहीं थी, बल्कि हर चेहरे पर खुशी और अपनापन था। इस दौरान गांव के सक्रिय सदस्य जैसे सुनील नागवंशी, रामकृष्ण निषाद, देवलाल, छबिलाल, सोमनाथ, थानेश ध्रुव, लेखराज, कमलेश, रोहित साहू, शेखर, महेश्वर यादव, योगेंद्र, चित्रसेन, जयंत और तुषार की विशेष भूमिका रही। गांववासियों ने इस आयोजन की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि आने वाले वर्षों में इसे और भी भव्य, रंगीन और सांस्कृतिक विविधता से भरपूर रूप में मनाया जाएगा।
बोडरा में हरेली तिहार बना उस मिट्टी का उत्सव, जिसने अपनी जड़ों को फिर से सींचा – और बताया कि गांव आज भी जिंदा हैं, और उनमें संस्कृति अब भी धड़कती है।