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बरगद तले घास… और सियासत का नया किरदार?

 

छत्तीसगढ़ की सियासत इन दिनों एक दिलचस्प करवट ले रही है। सवाल यह कि—क्या यह सचमुच पीढ़ी तब्दीली का दौर है या फिर वही पुरानी राजनीति, नए चेहरों के सहारे चल रही है?
कहावत है—बरगद तले घास नहीं उगती, लेकिन जब बरगद बूढ़ा होने लगे तो उसकी छाँव में नई कोंपलें फूटना तय है। आज यही मंजर बीजेपी की राजनीति में दिख रहा है—जहाँ पुराने दिग्गजों की चमक धुंधली पड़ती नज़र आ रही है और नए चेहरे मंच पर हावी होने लगे हैं।

  पहली बार बड़ा संतुलन

पहली बार छत्तीसगढ़ को मुख्यमंत्री समेत 14 मंत्रियों की नई टीम मिली है। हर वर्ग, हर क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देकर एक संतुलन बनाने की कोशिश हुई है।
लेकिन राजनीतिक हलकों में असली चर्चा यह है कि—क्या यह टीम जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेगी या फिर वही पुराने ढर्रे पर ही चलेगी?

  चौथाई कार्यकाल का सस्पेंस

सरकार के पाँच साल के कार्यकाल का चौथा हिस्सा बीत चुका है। अब बचा हुआ वक्त ही असली परीक्षा का होगा। किसानों की समस्याएँ, युवाओं के लिए रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य—इन मुद्दों पर सरकार की अगली चालें ही तय करेंगी कि यह तबदीली जनता को महसूस होगी या नहीं।



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