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डीज़ल चोरी या पनीर-पुलाव? कांग्रेस आंदोलन का असली रहस्य कहीं पे निगाहें, कहीं पर निशाना…

धमतरी नगर निगम दफ़्तर का मंजर ऐसा था मानो कोई सियासी फिल्म चल रही हो— बाहर नारों का कोलाहल, भीतर मुस्कुराहट और गुस्से का मिला-जुला चेहरा,और बीच में तैरते सवाल— क्या यह आंदोलन सचमुच डीज़ल चोरी के आरोप पर था? या फिर यह 120 रुपये और पनीर-पुलाव के सहारे खेली गई सियासी चाल थी?

लोग हैरत में थे—एक तरफ़ संघर्ष का दावा, दूसरी तरफ़ खाने का इंतज़ाम
 नज़ारा देखकर किसी ने तंज़ किया—
 यह आंदोलन है या सियासी पिकनिक? यहाँ नारे कम और पुलाव की खुशबू ज़्यादा आ रही है!

पर्दे के पीछे की महक

जनता उम्मीद कर रही थी कि कांग्रेस इस आंदोलन में पानी की समस्या, सफाई की लापरवाही, टूटी सड़कें और नालों की गंदगी जैसे मुद्दे उठाएगी..... लेकिन अचानक मंच से सिर्फ़ डीज़ल चोरी की गूंज सुनाई दी...... बाक़ी मुद्दे रहस्यमयी तरीके से गायब हो गए, मानो किसी ने फ़ाइल से पन्ने खींचकर हटा दिए हों।

मेयर के साथ मज़बूती—भाजपा के “जयचंद” का एंगल

आंदोलन का सबसे बड़ा ट्विस्ट यह रहा कि अधिकांश पार्षद महापौर रामू रोहरा के साथ खड़े दिखाई दिए।
सिर्फ़ कुछ “जयचंद” ही विरोध में नज़र आए—
और ये जयचंद कांग्रेस से नहीं, भाजपा से जुड़े हुए थे।
अब यह सवाल और गहरा गया —
  क्या कांग्रेस का आंदोलन खुद अपनी पार्टी की ताक़त से नहीं, बल्कि भाजपा के इशारे पर गर्माया गया?
  क्या असली निशाना मेयर थे या फिर कांग्रेस के भीतर भ्रम फैलाना था?

मुद्दों का गुम होना—सबसे बड़ा रहस्य

पूरे आंदोलन के दौरान जनता यही पूछती रही कि असली समस्याएँ कहाँ गायब हो गईं।
सड़कों की धूल, गंदे नाले, पानी की किल्लत—इन पर कोई ठोस चर्चा नहीं हुई।
मंच से आवाज़ें आईं, लेकिन वे घूम-फिरकर सिर्फ़ डीज़ल चोरी तक सीमित रहीं।
इस बीच, थाली में पुलाव-पनीर और जेब में 120 रुपये  ने आंदोलन की तस्वीर ही बदल दी।

जनता की गली-गली चर्चा

अब मोहल्लों की चौपालों और चाय दुकानों पर एक ही सवाल गूंज रहा है—
 ये आंदोलन था या सियासी रिहर्सल?
लोग मज़ाक उड़ाते नज़र आए—
 हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था,
कश्तियाँ पार कर जातीं, अगर जनता के पानी में दम था।

सस्पेंस बरक़रार

फिलहाल धमतरी की राजनीति में यह आंदोलन एक अनसुलझा रहस्य बन गया है.... निगाहें अब भी टिकी हैं मेयर रामू रोहरा की अगली चाल पर... क्या यह नहले पर दहला होगा?
या फिर कांग्रेस और भाजपा की यह मिलीजुली कहानी आने वाले दिनों में और बड़ा रूप लेगी?

सस्पेंस का परदा अभी बाकी है…
क्योंकि धमतरी की सियासत में हमेशा की तरह—
कहीं पे निगाहें होती हैं, कहीं पर निशाना।

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