धमतरी ज़िले में भारत सरकार की ‘जल जीवन मिशन’ योजना, जिसका उद्देश्य था — हर घर तक शुद्ध और सुरक्षित पानी पहुंचाना, अब अपने असली मकसद से भटकती हुई नज़र आ रही है। सतह पर दिखने वाली टंकियां, पाइपलाइन और नल तो हैं, लेकिन पीछे की हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।
पता चला है कि इस योजना के अंतर्गत किए गए कार्यों में न तो सीपेट (CIPET) से जरूरी तकनीकी सत्यापन लिया गया, और न ही सिंचाई विभाग के विशेषज्ञों से उपयोगिता प्रमाण पत्र (Utility Certificate) प्राप्त किया गया। जबकि यह सब नियमों के अनुसार अनिवार्य था।
यानी पानी की गुणवत्ता, उपलब्धता, खनिज संरचना — सब कुछ बस कागज़ों में सही बताया गया, लेकिन ज़मीन पर सच्चाई कुछ और है।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि पीएचई विभाग (लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी) में कुछ अफसर ऐसे हैं जो दशकों से अपनी कुर्सियों पर विराजमान हैं।
जनता की नज़र में ये अधिकारी अनुभवी माने जाते हैं, लेकिन इनका लंबे समय से पद पर बने रहना अब संदेह के घेरे में है।
सूत्रों की मानें तो इन अधिकारियों की चुपचाप मिलीभगत, राजनीतिक संरक्षण और अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने की नीति ने जल जीवन मिशन जैसे पवित्र उद्देश्य को भी शक के दायरे में ला खड़ा किया है।
योजना में उपयोग किए गए पाइप, फिटिंग्स और अन्य सामग्री की गुणवत्ता भी संदेहास्पद बताई जा रही है। कई स्थानों पर बिना पानी की समुचित जांच के टंकियों का निर्माण कर दिया गया।
यह तो वैसा ही है जैसे बिना दवा देखे मरीज़ को इलाज देना।
❗ जिम्मेदारी तय होनी चाहिए:
- नियमों की अवहेलना कर करोड़ों की योजना में लापरवाही बरतने वाले अफसरों पर कब होगी कार्रवाई?
- क्या दशकों से विभाग में जमे अधिकारियों की भूमिका की निष्पक्ष जांच होगी?
- क्या जनता को फिर एक बार सिर्फ कागज़ी योजनाओं के सपने दिखाकर धोखा दिया गया?
जनता पूछ रही है:
"हर घर जल" क्या सिर्फ एक प्रचार अभियान था?
या फिर वाकई में सरकार लोगों के घर तक पानी पहुंचाना चाहती थी — वो भी जांचा-परखा, सुरक्षित पानी?
अगर यह मिशन फेल हुआ है, तो इसका ज़िम्मेदार कौन है?
अंत में एक सवाल —
क्या धमतरी की प्यास इसी तरह अफसरशाही और लापरवाही में सूखती रहेगी? या कोई ईमानदार कदम उठाकर जनता के भरोसे को फिर से जीता जाएगा?