नदी का सीना चीर रहे हैं, पुल की सांसें रोक रहे हैं… ये खामोशी सिर्फ़ लापरवाही है या फिर कोई साज़िश छुप रही है?
दिन का उजाला, चमकती धूप और पुल के नीचे गूंजते ट्रैक्टरों की घर्र-घर्र आवाज़…
यह नज़ारा किसी बाज़ार का नहीं, बल्कि महानदी के सीने पर खेले जा रहे उस ख़तरनाक खेल का है जो सीधे-सीधे पुलों की नींव को खोखला कर रहा है...... महानदी में रेत निकासी पर पाबंदी है, नियम साफ़ कहते हैं किसी भी पुल या बैराज के नीचे 200 मीटर के दायरे तक खनन करना जुर्म है...... लेकिन सच यह है कि दिनदहाड़े, सबके सामने, हज़ारों ट्रैक्टर रेत निकाल ले जाते हैं और प्रशासन की नज़रों के सामने यह ख़ामोश लूट जारी है...... ऐसा लगता है जैसे किसी बड़ी तबाही की पटकथा पहले ही लिख दी गई हो।
लोगों की ज़बान पर अब सिर्फ़ एक ख़ौफ़ है —
मेघा पुल गिर चुका है… अब अछोटा पुल को गिराने की साज़िश तो नहीं रची जा रही?
नियम और क़ानून
- भारतीय खनिज अधिनियम, 1957 की धारा 21 और 22 के तहत बिना अनुमति खनन गुनाह है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 15 के मुताबिक अवैध खनन करने पर 5 साल की सज़ा और भारी जुर्माना हो सकता है।
- नदी संरक्षण गाइडलाइन, 2016 के अनुसार पुल और बैराज के नीचे तथा 200 मीटर की दूरी तक खनन सख़्त मना है।
मगर हक़ीक़त यह है कि यह नियम सिर्फ़ काग़ज़ों तक सीमित हैं और पुल की नींव से रोज़ाना रेत खींचकर निकाली जा रही है।
राहगीरों की गवाही
- चर्रा के रमेश यादव: मेघा पुल गिरा, अब अछोटा पुल भी गिर सकता है.... यह सब प्रशासन की मिलीभगत या किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा लगता है।
- ग्रामीण महिला सावित्री बाई: हम रोज़ देखते हैं ट्रैक्टर रेत लेकर जाते हैं..... अगर पुल टूटा तो सबसे पहले हम ही मारे जाएंगे..... हुकूमत अब भी ख़ामोश क्यों है?
लोगो में आक्रोश
ग्रामीणों का कहना है कि यह सिर्फ़ अवैध खनन नहीं, बल्कि पुल को गिराने की सोची-समझी चाल लगती है..... लोग ग़ुस्से में हैं और मांग कर रहे हैं कि तुरंत कड़ी कार्रवाई की जाए, वरना बड़ा आंदोलन होगा।
❓ सवाल बड़ा है —
- आखिर प्रशासन क्यों है मौन ?
- शिकायतों के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं?
- क्या अगली तबाही का इंतज़ार है?




