धमतरी | राज्योत्सव जैसे गरिमामय अवसर पर मंचीय शालीनता को ताश के पत्तों की तरह उड़ा दिया गया... जहां जनता संस्कृति और परंपरा के जश्न की उम्मीद लेकर पहुंची थी, वहीं नेताओं ने कुर्सी को ताज और कैमरे को भगवान मान लिया! मंच पर बैठे सत्ताधारी चेहरे फोटो सेशन में मस्त रहे, जबकि प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ती रहीं — मानो नियम नहीं, रुतबा बोल रहा हो!
सूत्र बताते हैं कि प्रशासनिक गलियारों में इस तुच्छ हरकत की गूंज तेज है — चर्चा है कि यह पहली बार नहीं, बल्कि पहले भी ऐसे ही घिनौने प्रदर्शन से स्थानीय छवि को ठेस पहुंचाई जा चुकी है....... जनता में सवाल गूंज रहा है — क्या यही है सेवा भावना?
मुख्य अतिथि यानी चीफ गेस्ट की सादगी और तहज़ीब ने जहां सबका दिल जीता, वहीं स्थानीय नेताओं की हरकतें अदब की किताब के उलट पन्ने साबित हुईं।
कहते हैं, नेतृत्व वह होता है जो समाज को दिशा दे — लेकिन यहां तो एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में सारी ऊर्जा व्यर्थ जा रही है....... दलीय व्हाट्सऐप ग्रुपों में मंच कार्ड चलवाने की राजनीति भी खूब गर्म रही, और अति-महत्वाकांक्षा ने मंच की ओर कदम बढ़वा दिए — नतीजा, राज्योत्सव की गरिमा तार-तार!
आज ये कुर्सियाँ अब पहचान बन गई हैं — सेवा की नहीं, सेल्फी की!
इधर, छत्तीसगढ़ रजत महा-उत्सव के अवसर पर नगर निगम स्टॉल में आगंतुकों का निगम परिवार की ओर से आत्मीय स्वागत एवं सम्मान किया गया...... इस अवसर पर राजेन्द्र शर्मा (पूर्व सभापति), मेघराज ठाकूर, नीलेश लुनिया, पिन्टू यादव, कुलेश सोनी, संतोष सोनकर, ईश्वर सोनकर, शैलेष रजक तथा चंद्रभागा साहू सहित अन्य जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी उपस्थित रहे।
राज्योत्सव की चमक के बीच यह दो तस्वीरें — एक ओर सेवा और संस्कार का सम्मान, तो दूसरी ओर सत्ता का दिखावा — समाज को यह सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि असली जनसेवा आखिर है किसकी पहचान?





