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राजस्व विभाग की उलझनों में फंसे आम लोग

 


सरकार की तमाम योजनाओं और डिजिटल भारत अभियान के बावजूद जमीन की रजिस्ट्री के बाद नाम चढ़ाने की प्रक्रिया अब भी जटिल बनी हुई है। आम नागरिकों को पटवारी, राजस्व निरीक्षक और अन्य अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। नाम चढ़ाने की प्रक्रिया आसान होने के बजाय और भी पेचीदा होती जा रही है।

रजिस्ट्री के बाद भी पटवारी के चक्कर

जब कोई व्यक्ति जमीन की रजिस्ट्री करवाता है, तो उसे उम्मीद होती है कि जल्द ही उसके नाम पर दाखिल-खारिज की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। लेकिन हकीकत कुछ और होती है। रजिस्ट्री के बाद भी नाम चढ़वाने के लिए आम आदमी को कई बार पटवारी के पास जाना पड़ता है। पटवारी कभी कागजों की कमी बताकर टाल-मटोल करता है, तो कभी "ऊपर से आदेश नहीं आया" कहकर काम लटकाए रखता है। कई बार बिना रिश्वत दिए फाइल आगे नहीं बढ़ती।

ऋण पुस्तिका और नक्शे में नाम जोड़ने की जद्दोजहद

नाम चढ़ाने के बाद भी परेशानियों का अंत नहीं होता। जमीन मालिक को ऋण पुस्तिका बनवाने के लिए फिर से पटवारी और राजस्व निरीक्षक के दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं। कई बार अधिकारी छोटे-छोटे बहाने बनाकर फाइल को अटका देते हैं। जब नाम नक्शे में चढ़वाने की बात आती है, तो समस्या और बढ़ जाती है। पटवारी कहता है कि उसने अपना काम कर दिया, लेकिन राजस्व निरीक्षक के पास फाइल अटकी हुई है।

शिकायत का भी नहीं होता असर

जब परेशान नागरिक अधिकारी के पास जाकर शिकायत करते हैं, तो उन्हें लिखित शिकायत देने के लिए कहा जाता है। लिखित शिकायत देने के बाद भी फाइल महीनों तक धूल खाती रहती है। कई बार अधिकारी शिकायत को गंभीरता से नहीं लेते। आम जनता के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि आखिर वह अपनी समस्या लेकर कहां जाए।

राजस्व विभाग की इस लंबी और जटिल प्रक्रिया से आम लोग बेहद परेशान हैं। सरकार को इस व्यवस्था में सुधार लाने की जरूरत है ताकि नागरिकों को बिना भ्रष्टाचार और भागदौड़ के अपने जमीन संबंधी कार्य आसानी से पूरे हो सकें।

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