धमतरी, छत्तीसगढ़ —
धमतरी की गलियों में इन दिनों एक ख़ामोश तहलका मचा हुआ है। कैमरे की नज़र से बचते हुए, बोतलें सरहद पार कर रही हैं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश और महारास्ट्र के शराब की, जो छत्तीसगढ़ के धमतरी में अवैध तरीके से खुलेआम बेची जा रही है — और वो भी आबकारी विभाग की नाक के नीचे!
लोगों ने शिकायतें कीं, फोन घुमाए, दरवाज़े खटखटाए — मगर शराब की ये गाड़ी है कि रुकने का नाम नहीं ले रही।
मध्यप्रदेश के गोदामों से निकलकर, ये बोतलें धमतरी के बार और दुकानों तक पहुँच रही हैं जैसे कोई VIP मेहमान — ना रोक, ना टोक!
कहाँ से आती है ये शराब?
रात के अंधेरे में, सुनसान रास्तों से होते हुए मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सीमावर्ती इलाकों से शराब के ट्रक, गाड़ियाँ और यहां तक कि बाइक्स पर पेटियां भरकर लाई जाती हैं। कई बार तो ये शराब सरकारी सील पैक बोतलों में होती है, जिस पर साफ़ लिखा होता है: "मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में विक्रय हेतु" — लेकिन फिर भी ये धमतरी में खुलेआम बेची जा रही है।
कौन कर रहा है ये तस्करी?
यह काम कोई एक-दो लोगों का नहीं। पूरा एक रैकेट काम कर रहा है, जिसमें स्थानीय सप्लायर, होटल मालिक, बार संचालक और कुछ भ्रष्ट अफसरों की मिलीभगत बताई जा रही है। बिना किसी ऊंची पहुंच या संरक्षण के, इतना बड़ा अवैध कारोबार लंबे समय तक नहीं चल सकता।
शराब के ब्रांड्स जो पूरे छत्तीसगढ़ में नहीं मिलते, वो धमतरी में मिल रहे हैं जैसे कोई आम चीज़ हो। कई लोगों का कहना है कि कुछ बारों में विशेष ग्राहकों को गुपचुप तरीके से महंगे ब्रांड परोसे जाते हैं, जो केवल मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के मार्केट में उपलब्ध हैं।
अवैध शराब से राजस्व को नुकसान:
ये अवैध बिक्री न केवल समाज को बर्बाद कर रही है, बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार के राजस्व को भी करोड़ों का चूना लगा रही है। आबकारी विभाग की वैध दुकानों को इससे भारी घाटा हो रहा है, और टैक्स की आमदनी घट रही है।
सब जानते हैं, मगर कोई कुछ नहीं कहता। क्यों?
- क्या इस पूरे खेल में ऊपर तक की सेटिंग है?
- क्या विभागीय अफसरों को महीना बंधा हुआ है?
- क्या कार्रवाई तभी होगी जब कोई बड़ी घटना हो जाएगी?
अब सवाल जनता का है:
- हम शिकायत करें, तो क्या हम पर ही कार्रवाई होगी?
- क्या छत्तीसगढ़ में कानून का राज है, या शराब माफिया का?
धमतरी में चल रहे इस 'माफिया मॉडल' के खिलाफ़ अब जनता में रोष है। लोगों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही इस पर लगाम नहीं कसी गई, तो वे सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे।
आगाज़ हो चुका है... अब अंजाम कौन लिखेगा?