धमतरी जिले के कपालफोड़ी गाँव में आज सिर्फ खेत ही नहीं सूखे हैं, बल्कि सपने भी दम तोड़ते नज़र आ रहे हैं।
सरकारी कागज़ों में दर्ज है — कपालफोड़ी में एक नया मजबूत तटबंध खड़ा हो चुका है।
लेकिन गाँव की सूखी मिट्टी चीख-चीख कर बता रही है — "यहाँ नया कुछ नहीं बना... बस पुराने घावों पर सरकारी फर्जी मरहम लगाया गया है।"
फंड आया, खेल हुआ, जनता ठगी गई!
डीएमएफ फंड से करोड़ों रुपये का खेल रचा गया।
कागजों में पुरानी दीवारें चमक उठीं। ठेकेदारों के खाते भर गए, नेताओं की जेबें भारी हो गईं।
लेकिन किसान आज भी बरसात के पानी में अपने खेत डूबते-उजड़ते देख रहे हैं।
कलेक्टर के सामने साजिश कैसे परवान चढ़ी?
गाँववालों का सवाल है —
किस अफसर ने आँख मूँद कर फर्जी काम का सत्यापन कर दिया?
किस नेता ने गाँव की गरीबी को सौदा बनाकर बेच दिया?
क्यों नहीं रुकी सरकारी तिजोरी से लूट?
गाँव का हर बच्चा पूछ रहा है — "हमारे सपनों का हत्यारा कौन?"
कपालफोड़ी के मासूमों की आँखों में आज भी वो उम्मीद चमकती है, जो हर मौसम बारिश के भरोसे लगाई जाती थी।
लेकिन अब सवाल है —
"हमें पानी से पहले न्याय चाहिए!"
जाँच का ढोल बज रहा है... मगर कार्रवाई कब?
सरकारी दफ्तरों में फाइलें घूम रही हैं, नोटशीट पर घिसती कलमें थम गई हैं, पर कार्रवाई का नामोनिशान नहीं।
अब धैर्य की सीमा टूटी — आंदोलन की तैयारी
कपालफोड़ी अब चुप नहीं बैठेगा।
गाँव-गाँव, किसान-किसान अब एक सुर में कह रहे हैं —
"या तो दोषी जेल जाएँगे... या फिर हम सड़कों पर उतरेंगे!"
यह सिर्फ तटबंध का सवाल नहीं है — यह सम्मान की लड़ाई है।
कपालफोड़ी के खेतों की दरारों से उठती आवाज़ कह रही है —
"हमें ठगा गया है... अब हम लड़ेंगे, इंसाफ के लिए लड़ेंगे!"