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धमतरी नगर निगम में डस्टबिन घोटाला: मतदाता से ज़्यादा डस्टबिन, ईमानदारी का जनाज़ा!" डस्टबिन के पीछे कौन ?" – धमतरी का असली ‘कचरा कांड’!


एक शहर, एक सपना – साफ़-सुथरा धमतरी।

एक वादा – जनता की सेवा।
और फिर आया ‘डस्टबिन स्कैम’... जिसने खोल दी सफाई की राजनीति में छुपे गंदगी की परतें।

सिर्फ़ 50 रुपये की डस्टबिन... लेकिन खरीदी गई 237 रुपये में!
और वो भी जनता के पैसों से... पार्षद निधि से!
5 महीने में हजारों डस्टबिन खरीदे गए। गिनती इतनी कि हर घर को 3–3 डस्टबिन मिल जाएं... फिर भी शहर गंदा का गंदा!

तो सवाल ये है...

"कचरा साफ़ करने का ठेका था या भ्रष्टाचार का मौका?"


पर्दे के पीछे के किरदार – (कुछ नाम, कुछ चेहरे):

  • विजय देवांगन (महापौर, सुभाष नगर वार्ड) – 5,198 डस्टबिन
  • भीषण लाल निषाद (लालबगीचा) – 3,235
  • मिथलेश सिंहा (बाँसपारा) – 3,445
  • चोवा राम वर्मा (औद्योगिक वार्ड) – 2,735
  • सूरज गहरवाल, नीलू पवार, सुशीला तिवारी, राही यादव, केंद्र कुमार पेंदरिया ...
    नाम बदलते रहे, लेकिन खेल वही रहा – जनता की आँखों में धूल, और डस्टबिन की आड़ में जेब भरने का मौक़ा।

वार्ड मे मतदाता 1200 – लेकिन खरीदी गई 3000 डस्टबिन?
क्या ये डस्टबिन इंसानों के लिए थीं या भूतों की कालोनी के लिए?


“जनता को मिला कचरा, पार्षदों को मिला कैश”

कागजों में हर वार्ड बना स्वच्छता का आदर्श मॉडल।
जमीनी सच्चाई – नालियों में गंदगी, गलियों में बदबू और मोहल्लों में बिखरे टूटे हुए डस्टबिन।

ये स्क्रिप्ट कोई फिल्म की नहीं है, ये हकीकत है – धमतरी की!
जहाँ पार्षद निधि को जनता की भलाई के बजाय “कमाई की स्कीम” बना दिया गया।


"एक घोटाले की दास्तान – जनता पूछ रही है:"

  • कहाँ हैं वो हजारों डस्टबिन?
  • क्या कोई जाँच होगी या फिर मामला भी डस्टबिन में फेंक दिया जाएगा?
  • दोनों पार्टी के नेता एक साथ खेल में? तो फिर किससे उम्मीद करें?

“ये भ्रष्टाचार है जनाब – कांग्रेस और भाजपा, दोनों की मिलीभगत का नमूना।”


अब जनता कह रही है –

"हमने वोट दिया था विकास के लिए, न कि भ्रष्टाचार के लिए!"
"अब हर डस्टबिन का हिसाब देना होगा!"
"डस्टबिन में अब भ्रष्ट चेहरों की तस्वीर डालनी होगी!"


धमतरी की गलियों से आवाज़ उठ रही है –
"ये नई क्रांति का समय है!"
"अब डस्टबिन नहीं, जवाब चाहिए!"
"हमारा पैसा, हमारा हक़ – वापस दो!"



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