धमतरी नगर निगम में इन दिनों एक ऐसा मामला गरमाया हुआ है, जिसने न सिर्फ़ शहर की राजनीति में हलचल पैदा की है, बल्कि सिस्टम की कार्यशैली पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सोरीद नाला से मुक्तीधाम तक बनाया जा रहा नाला, जिसकी लागत 1 करोड़ 64 लाख रुपये तय की गई थी, अब जनता के लिए जल निकासी नहीं बल्कि भ्रष्टाचार बहाने का रास्ता बनता नज़र आ रहा है।
▪ ठेकेदार का खेल — क़ायदे की हत्या
निर्माण के नाम पर ठेकेदार खुले आम मनमानी कर रहा है। तय मानकों के अनुसार जहाँ 6–6 इंच पर छड़ बाँधनी थी, वहाँ अब 1–1 फुट के अंतर पर सरिया लगाया जा रहा है। और सिर्फ़ फासला ही नहीं, छड़ की मोटाई में भी खेल हो रहा है —
12/10 एमएम की जगह 8/10 एमएम की कमजोर छड़ें लगाकर गुणवत्ता को दफ़न किया जा रहा है।
▪ इंजीनियर साहब फ़ील्ड से ग़ायब — फ़ाइल पर मौज़ूद
मौके पर न कोई निगरानी, न माप, न गुणवत्ता की जांच। नगर निगम के ज़िम्मेदार इंजीनियर साहब को फील्ड में जाने की फुरसत नहीं, लेकिन ठेकेदार को "हरे झंडे" देना जारी है। फाइलों में दस्तख़त करना ही उनकी ड्यूटी समझ ली गई है।
▪ जनता नाराज़ — मेयर के नारे पर तंज
शहर में अब ‘खाऊंगा ना खाने दूंगा’ का नारा मज़ाक का विषय बनता जा रहा है। मेयर रामू रोहरा के इस स्लोगन की अब लोग तल्ख़ लहजे में चर्चा कर रहे हैं, क्योंकि ज़मीनी हकीकत इसके बिलकुल उलट है।
“अगर सरिया ही चोरी हो गया, तो नाला पानी क्या, भरोसे का भी भार नहीं झेल पाएगा,”
– एक स्थानीय नागरिक का व्यंग्यात्मक बयान।
▪ निगम को लाखों का चूना, जनता को भविष्य की परेशानी
यह सिर्फ़ घटिया निर्माण नहीं, बल्कि लाखों रुपये के सरकारी पैसे का सीधा नुकसान है। आने वाले दिनों में यदि यह नाला ध्वस्त होता है, तो इसका असर न सिर्फ़ आसपास के दो वार्डों पर पड़ेगा बल्कि नगर निगम की छवि और कार्यप्रणाली पर भी भारी सवाल खड़े करेगा।
▪ विरोध की आहट — कार्रवाई नहीं तो आंदोलन तय
मोहल्लेवासियों ने साफ़ कहा है कि अगर निर्माण कार्य की जांच और पुनर्मूल्यांकन तुरंत शुरू नहीं हुआ, तो वे नगर निगम कार्यालय के सामने प्रदर्शन करेंगे।
ये सिर्फ़ नाले की नहीं, सिस्टम की सड़ांध की कहानी है।
और इस बार पानी नहीं, जनता का ग़ुस्सा बहने वाला है...!